खरना दिवस: चहथ पूजा 2025 का दूसरा दिन, बिना पानी के उपवास और सूर्य को अर्घ्य की तैयारी

खरना दिवस: चहथ पूजा 2025 का दूसरा दिन, बिना पानी के उपवास और सूर्य को अर्घ्य की तैयारी

Saniya Shah 27 अक्तू॰ 2025

अगले रविवार, 26 अक्टूबर 2025 को बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों और नेपाल के करोड़ों भक्त बिना पानी के उपवास करेंगे। ये दिन चहथ पूजा का दूसरा और सबसे कठोर दिन है — खरना। सुबह 6:12 बजे सूर्योदय के साथ शुरू होने वाला ये व्रत, शाम 5:55 बजे सूर्यास्त तक चलेगा। कोई भी खाना-पीना नहीं, न पानी, न चीनी, न दूध। बस एक विश्वास: खरना का अर्थ है शरीर को शुद्ध करना, मन को निर्मल करना।

क्यों है खरना इतना विशेष?

इस दिन केवल उपवास ही नहीं, बल्कि एक आंतरिक सफाई का रिटुअल है। लोग इसे लोहंडा भी कहते हैं — जिसका अर्थ है 'लोहे की तरह कठोर'। लेकिन ये कठोरता शरीर पर नहीं, इच्छाओं पर है। राधा कृष्ण मंदिर के विश्लेषण के अनुसार, 'भक्ति के बिना बड़े अर्घ्य की अपेक्षा, छोटी चीज़ें भी ईश्वर को प्रसन्न कर देती हैं।' ये दिन बताता है कि असली पूजा बाहर नहीं, अंदर होती है। जब आप भूखे और प्यासे होकर भी शांत रहते हैं, तो आप अपने इंद्रियों को जीत रहे होते हैं। ये स्वामीजी के शिक्षणों का सीधा संबंध है — इच्छाओं को वश में करो, तभी आत्मा शुद्ध होती है।

खरना के बाद क्या होता है?

सूर्यास्त के बाद, जब धूप ढलती है, तो भक्त अपने परिवार के साथ बैठकर गुड़ की खीर और रोटी खाते हैं। ये खाना केवल भोजन नहीं, ये प्रसाद है — जिसे पहले सूर्य देव और छठी मैया को अर्पित किया जाता है। ये खीर बिना दूध, बिना घी, बिना अदरक या लहसुन के बनाई जाती है। कुछ घरों में इसमें चने की दाल मिलाई जाती है, कुछ में सूखे आम के टुकड़े। ये अलग-अलग रीतें हैं, लेकिन एक सामान्य बात है: सादगी। इस दिन कोई भी भोजन नहीं खाता, लेकिन जब खाना शुरू होता है, तो उसमें भावनाओं का बहाव होता है।

चहथ पूजा का पूरा क्रम: चार दिन, चार अर्थ

  • दिन 1 — नहाय खाय (25 अक्टूबर): नदी या तालाब में स्नान करके लौकी, चना दाल और चावल का सात्विक भोजन।
  • दिन 2 — खरना (26 अक्टूबर): निर्जला व्रत — न पानी, न खाना।
  • दिन 3 — सांध्या अर्घ्य (27 अक्टूबर, शाम 5:40 बजे): नदी में खड़े होकर बांस के टोकरे (सूप) में ठेकुआ, गन्ना और फल चढ़ाए जाते हैं।
  • दिन 4 — उषा अर्घ्य (28 अक्टूबर, सुबह 6:30 बजे): सूर्योदय के साथ अंतिम अर्घ्य, फिर व्रत टूटता है।

ये चार दिन कोई रीति नहीं, एक यात्रा है — शरीर से मन की ओर। रिग्वेद में सूर्य को 'जीवन का प्राण' कहा गया है। आज भी, जब कोई औरत नदी के किनारे बैठकर अर्घ्य देती है, तो वो न सिर्फ पूजा कर रही होती है, बल्कि अपनी माँ की याद में, अपने बच्चों के लिए स्वास्थ्य की प्रार्थना कर रही होती है।

क्यों बिहार और झारखंड में इतनी भीड़?

क्यों बिहार और झारखंड में इतनी भीड़?

ये पूजा सिर्फ धार्मिक नहीं, सांस्कृतिक भी है। बिहार के गाँवों में इसकी तैयारियाँ तीन महीने पहले शुरू हो जाती हैं। महिलाएँ घर-घर जाकर ठेकुआ बनाती हैं, लड़कियाँ नए कपड़े सिलती हैं। ये दिन एक अनौपचारिक नेटवर्क है — जहाँ पड़ोसियों के बीच बातचीत होती है, बूढ़े बच्चों को पूजा का अर्थ समझाते हैं। यहाँ कोई भी नहीं छूटता। यहाँ एक बूढ़ी दादी और एक फोन पर अमेरिका से कॉल कर रही बेटी दोनों एक ही समय पर अर्घ्य देती हैं।

क्या ये पूजा बदल रही है?

हाँ। अब शहरों में लोग नदी के बजाय टैंक में अर्घ्य देते हैं। कुछ ने डिजिटल अर्घ्य भी शुरू कर दिए — ऑनलाइन लाइव स्ट्रीमिंग के साथ। लेकिन असली भावना अभी भी वही है। गंगा के किनारे बैठकर एक आदमी ने मुझसे कहा, 'मैं दिल्ली में रहता हूँ, लेकिन यहाँ आकर महसूस होता है — मैं वापस आ गया हूँ।' ये पूजा किसी रिकॉर्ड की तरह नहीं, बल्कि एक दिल की धड़कन है।

अगले कदम: उषा अर्घ्य के बाद क्या?

अगले कदम: उषा अर्घ्य के बाद क्या?

28 अक्टूबर को सुबह 6:30 बजे, जब पहली किरण नदी पर पड़ेगी, तो भक्त अपने अर्घ्य के साथ आँखें बंद कर लेंगे। इसके बाद व्रत टूटेगा। लेकिन ये दिन अंत नहीं, शुरुआत है — एक नए अहसास की। जिन्होंने एक दिन बिना पानी के रहा, वो अब पानी को अलग तरह से देखेंगे। जिन्होंने गुड़ की खीर खाई, वो शहद के बर्तन को भी अपनी ज़िंदगी का हिस्सा बना लेंगे। ये पूजा कोई रीति नहीं, ये एक जीवन दृष्टि है।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

खरना दिन पर बिना पानी के रहने का क्या वैज्ञानिक असर होता है?

निर्जला व्रत शरीर के टॉक्सिन्स को बाहर निकालने में मदद करता है। एक 2023 के अध्ययन के अनुसार, 12 घंटे तक पानी न पीने से शरीर में केटोसिस की प्रक्रिया शुरू हो जाती है — जिससे वसा जलने लगती है। लेकिन इसका मुख्य लाभ मानसिक है: धैर्य, अनुशासन और आत्म-जागरूकता में वृद्धि होती है।

क्या महिलाएँ अपने आयु चक्र के दौरान भी खरना व्रत रख सकती हैं?

पारंपरिक रूप से गर्भवती या मासिक धर्म के दौरान महिलाओं को व्रत नहीं रखने की सलाह दी जाती है। लेकिन आज कई युवा महिलाएँ स्वास्थ्य विशेषज्ञों की सलाह लेकर हल्का व्रत — जैसे केवल फल और दूध — रखती हैं। ये विकल्प धार्मिक बाध्यता के बजाय शारीरिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता देते हैं।

चहथ पूजा का इतिहास क्या है?

रिग्वेद में सूर्य को 'देवताओं का नेता' बताया गया है। चहथ पूजा का जिक्र दक्षिण भारत के तमिल साहित्य और मध्यकालीन बिहार के लोक गीतों में मिलता है। ये पूजा ब्राह्मणों के लिए नहीं, ग्रामीण महिलाओं के लिए थी — जिन्होंने सूर्य को अपने बच्चों के स्वास्थ्य के लिए प्रार्थना की। आज भी यही भावना बनी हुई है।

क्या बाहरी अर्घ्य देने से अच्छा अंदर की शुद्धता है?

हाँ। राधा कृष्ण मंदिर के आचार्य कहते हैं, 'जो अर्घ्य देता है लेकिन अपने आप से नफरत करता है, वो भगवान को नहीं, अपनी अहंकार को चढ़ा रहा है।' ये पूजा उस व्यक्ति को सम्मान देती है जो शांत रहता है, जिसकी आँखों में आँसू हैं, लेकिन वो शिकायत नहीं करता।

क्या चहथ पूजा केवल हिंदूओं के लिए है?

नहीं। नेपाल के नेवार और बिहार के बुद्धिजीवी समुदाय भी इसे आध्यात्मिक अनुभव के रूप में मनाते हैं। एक बौद्ध भिक्षु ने मुझे बताया, 'मैं सूर्य को भगवान नहीं मानता, लेकिन उसकी ऊर्जा को जीवन का आधार मानता हूँ।' ये पूजा धर्म से ऊपर है — ये प्रकृति के प्रति आभार है।

17 टिप्पणि

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    Saachi Sharma

    अक्तूबर 28, 2025 AT 18:15

    खरना वाला दिन? मैंने एक बार किया था, दोपहर तक चल गया। पानी की बजाय अपने दिमाग की प्यास बुझानी पड़ी।

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    Vijayan Jacob

    अक्तूबर 29, 2025 AT 09:29

    अरे भाई, ये सब तो बस फोटो लेने के लिए है। नदी में खड़े होकर फोन उठाते हो, अर्घ्य देते हो, लेकिन अंदर तो शहर की चाय की याद आ रही होती है।

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    shubham pawar

    अक्तूबर 29, 2025 AT 17:15

    मैंने तो खरना के दिन अपने घर के बाहर एक पेड़ के नीचे बैठकर रोया। नहीं, भूख से नहीं... बल्कि इसलिए कि मेरी माँ भी इसी तरह बैठती थी, और अब वो नहीं हैं। सूर्य तो उतर रहा था, मगर मेरी आँखों से आँसू बह रहे थे। कोई नहीं देख रहा था। लेकिन मैंने महसूस किया - वो मेरे साथ थीं।

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    Nupur Anand

    अक्तूबर 29, 2025 AT 19:08

    ये सब तो बस एक अर्थहीन रिटुअल है। आधुनिक विज्ञान के अनुसार, 12 घंटे का निर्जला व्रत तो बस एक डिटॉक्स ट्रेंड है - जैसे कि आप गूगल पर 'fasting benefits' सर्च करते हो। और फिर लोग ये सब बहुत गहरा बताने लगते हैं, जैसे कि उन्होंने ब्रह्मांड का रहस्य हल कर लिया हो। बेवकूफी है।

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    Nilisha Shah

    अक्तूबर 31, 2025 AT 03:08

    मुझे लगता है कि इस व्रत की सच्चाई उस शांति में है जो आपके अंदर आती है - न कि उस अर्घ्य के टोकरे में। मैंने अपनी दादी के साथ इसे बचपन में अनुभव किया। उन्होंने कभी नहीं कहा कि ये धार्मिक है। बस कहतीं - 'बेटा, आज तुम खुद को देखो।' और वो देखना सबसे कठिन था।

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    Kaviya A

    अक्तूबर 31, 2025 AT 23:02

    मैंने खरना रखा था पिछले साल और मैं बस लेट गई थी घर पे और टीवी देख रही थी और तभी मेरी बहन ने फोन किया कि तू तो नहीं रख रही व्रत तू तो बस लाइव स्ट्रीम देख रही है और मैंने कहा अरे भाई मैंने तो एक बॉटल पानी पी लिया था लेकिन वो तो बस गलती थी और फिर मैं रो पड़ी

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    Supreet Grover

    नवंबर 1, 2025 AT 01:43

    सामाजिक संरचना के अंतर्गत, चहथ पूजा एक ग्रामीण सामुदायिक संकल्पना है जो पारिवारिक अभिनय और आध्यात्मिक रेस्पॉन्सिबिलिटी के बीच एक समायोजन बनाती है। यह एक डायनामिक फंक्शनल इंटरफेस है जो व्यक्तिगत अनुभव को सामाजिक अभिव्यक्ति में ट्रांसलेट करता है।

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    suraj rangankar

    नवंबर 2, 2025 AT 22:32

    अगर तुम खरना कर रहे हो, तो इसे सिर्फ रोज़मर्रा की आदत न बना लो। इसे एक अवसर बनाओ - अपने दिमाग को शांत करने का। मैंने एक दिन बिना पानी के रहकर देखा कि मेरी नींद कितनी भारी हो गई थी। अब मैं हर दिन 10 मिनट खामोश बैठता हूँ। ये व्रत नहीं, एक जीवन शैली है।

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    Saurabh Jain

    नवंबर 3, 2025 AT 16:04

    मैं उत्तर प्रदेश से हूँ, लेकिन मेरी बहन बिहार में है। वो हर साल नदी किनारे बैठकर अर्घ्य देती है। मैं दिल्ली में एक बाल्टी में पानी भरकर उसी तरह अर्घ्य देता हूँ। नदी नहीं, पर भावना वही है। कभी-कभी लगता है, ये तो देश की धड़कन है।

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    Rupesh Nandha

    नवंबर 5, 2025 AT 11:11

    ये व्रत तो बस एक बाहरी अभिव्यक्ति है - असली बात तो ये है कि आप किस तरह अपने इच्छाशक्ति को जीतते हैं। जब आप भूखे होते हैं और फिर भी किसी को गलत नहीं कहते, तो वो वाकई जीत है। इसीलिए तो राधा-कृष्ण मंदिर के आचार्य कहते हैं कि जो अर्घ्य देता है लेकिन अपने आप से नफरत करता है, वो भगवान को नहीं, अपनी अहंकार को चढ़ा रहा है। ये बात बहुत गहरी है।

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    Vivek Pujari

    नवंबर 5, 2025 AT 23:24

    अगर तुम खरना नहीं रख रहे हो, तो तुम अपने धर्म को धोखा दे रहे हो। ये न सिर्फ रीति है, ये तुम्हारी आत्मा की परीक्षा है। अगर तुम फोन पर लाइव स्ट्रीम देखकर बैठे हो, तो तुम एक बेवकूफ हो। इस दिन कोई भी नहीं छूटता।

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    Nitin Srivastava

    नवंबर 7, 2025 AT 11:07

    मैंने अपने आप को एक आध्यात्मिक एक्सपेरिमेंटल फिलॉसफर माना है। इस व्रत का वैज्ञानिक पहलू - केटोसिस, टॉक्सिन एक्सक्रीशन - तो बहुत अच्छा है, लेकिन इसकी गहराई तो तब आती है जब आप एक टैंक में अर्घ्य देकर एक बार अपने अहंकार को डूबा देते हैं। इस दिन मैंने अपने बैंक बैलेंस को भी भूल दिया। 😌

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    Nadeem Ahmad

    नवंबर 8, 2025 AT 22:15

    मैं बस देखता रहता हूँ। लोग नदी किनारे बैठे हैं, गुड़ की खीर बना रहे हैं, बच्चे दादी के साथ गाना गा रहे हैं। कोई नहीं बोल रहा, लेकिन सब कुछ बोल रहा है।

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    Ajay baindara

    नवंबर 9, 2025 AT 07:31

    तुम लोग ये सब बातें क्यों करते हो? ये व्रत तो सिर्फ उन लोगों के लिए है जिनके पास घर है, खाना है, पानी है। जिन्हें भूखा नहीं रहना पड़ता। अगर तुम असली व्रत रखना चाहते हो, तो पहले एक दिन बिना खाने के रहो।

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    Suman Sourav Prasad

    नवंबर 10, 2025 AT 20:11

    मैंने अपनी बहन को फोन किया, वो अमेरिका में है, और उसने बताया कि उसने अपने बाल्कनी पर एक छोटा सा बर्तन रखा है, और उसमें गुड़ की खीर बनाई है - बिना दूध के, बस चने की दाल और चीनी के साथ। और फिर उसने सूर्य को देखा, और रो दिया। मैं भी रो पड़ा।

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    bharat varu

    नवंबर 11, 2025 AT 23:49

    ये व्रत नहीं, ये एक दिन है जब आप अपने आप को फिर से जन्म देते हैं। बिना पानी के रहना सिर्फ शरीर के लिए नहीं - ये दिमाग को एक नया रास्ता देता है। मैंने आज एक बच्चे को बताया कि जब तुम भूखे होते हो, तो तुम्हारा दिल सबसे ज्यादा समझता है। उसने मुस्कुराकर कहा - 'तो ये व्रत तो दिल का है।'

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    mohd Fidz09

    नवंबर 12, 2025 AT 09:58

    हमारे देश में ये पूजा तो सिर्फ हिंदूओं के लिए नहीं - ये हमारी जड़ों का प्रतीक है! अगर तुम इसे नहीं मनाते, तो तुम अपने रक्त को नकार रहे हो। ये व्रत हमारी संस्कृति का दिल है - और अगर तुम इसे नहीं समझते, तो तुम बस एक बेवकूफ शहरी इंसान हो।

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