क्या आप जानते हैं कि किसी कंपनी में अधिग्रहण की खबर आने पर उसके शेयर मिनटों में ऊपर-नीचे हो सकते हैं? शेयर अधिग्रहण (acquisition) सिर्फ कंपनी का नाम बदलना नहीं होता — यह प्रबंधन, रणनीति और आपकी निवेश वाली पूँजी पर असर डालता है। यहां आसान भाषा में बताता हूँ कि क्या होता है, किस तरह के संकेत देखें और तुरंत क्या करना चाहिए।
सबसे पहले, शेयर अधिग्रहण का मतलब है कि एक कंपनी या व्यक्ति दूसरी कंपनी के शेयर खरीदकर उस पर नियंत्रण हासिल कर लेता है। यह सौहार्दपूर्ण (friendly) हो सकता है या विरोधी (hostile) भी। सौहार्दपूर्ण मामले में दोनों बोर्ड सहमति देते हैं; विरोधी में खरीदार सीधे शेयरधारकों तक पहुँचकर या ओवर-ऑफर देकर नियंत्रण लेने की कोशिश करता है।
अधिग्रहण कई तरीकों से होता है: सीधे शेयर खरीदना, शेयर स्वैप, ओवर-ऑफर या सारा व्यवसाय खरीदना। कीमत अक्सर प्रीमियम पर तय होती है ताकि मौजूदा शेयरधारक ऑफर स्वीकार करें। नियमों के अनुसार, बड़े अधिग्रहणों में SEBI और संबंधित अधिकारियों की मंजूरी जरूरी होती है और सार्वजनिक कंपनी में ओपन ऑफर देना पड़ता है।
प्रोसेस में due diligence यानी कंपनी की पूँजी, कर्ज, कानूनी दायित्व और ग्राहक बेस की जाँच शामिल होती है। खरीदार को यह तय करना होता है कि क्या कंपनी की वैल्यू उस प्राइस पर खरीदी जाय। कभी-कभी नेतृत्व में बदलाव की खबरों से शेयर अस्थायी रूप से गिरते या बढ़ते दिखते हैं — जैसे कि Eternal में नए CEO नियुक्त होने की खबर से शेयरों में हल्की गिरावट देखी गई (संदर्भ: Eternal CEO नियुक्ति)।
पहला सवाल: अधिग्रहण से आपकी होल्डिंग का लाभ होगा या नही? यदि खरीदार मजबूत है और योजना साफ है, तो लंबी अवधि में फायदा मिल सकता है। दूसरा: ऑफर प्राइस क्या है और वह मौजूदा मार्केट प्राइस से कितना अलग है? तीसरा: यह सौहार्दपूर्ण है या विरोधी — विरोधी अधिग्रहण में उतार-चढ़ाव ज्यादा होता है।
तुरंत क्या करें? घबराहट में शेयर बेचने से पहले खबर पढ़ें और कंपनी की आधिकारिक घोषणा देखिए। बड़े बाजार मूव्स में व्यापक घटनाक्रम भी जुड़ा हो सकता है — जैसे जब पूरे बाजार में भारी गिरावट आई थी और सेंसेक्स लुढ़क गया था (संदर्भ: भारतीय शेयर बाजार में गिरावट)। ऐसे समय में व्यक्तिगत खबरों का प्रभाव अलग देखने को मिलता है।
अगर आप सक्रिय निवेशक हैं तो due diligence खुद करें या अच्छा सलाहकार लें। छोटे निवेशक के लिए सुझाव है: अधिग्रहण के अंतिम प्रस्ताव, भुगतान का तरीका और टैक्स असर समझें। कुछ मामलों में बोनस शेयर या आईपीओ जैसे इवेंट भी कंपनियों की वैल्यू बदल देते हैं (उदाहरण: विप्रो बोनस, मोबिक्विक IPO)।
अंत में, हर अधिग्रहण अलग होता है। खबरों को पढ़ना और कंपनी के फंडामेंटल्स समझना जरूरी है। अगर आप चाहें, हमारी साइट पर "शेयर अधिग्रहण" टैग से जुड़ी ताज़ा खबरें और विश्लेषण पढ़ सकते हैं और संबंधित स्टोरीज़ पर क्लिक करके पूरी रिपोर्ट देख सकते हैं।