राज्यपाल भारत के हर राज्य में राष्ट्रपति के प्रतिनिधि होते हैं और अक्सर सुर्खियों में रहते हैं। क्या वे सिर्फ राजभवन में शौभायात्रा भर हैं या असल में फैसलों पर असर डालते हैं? यहाँ मैं सीधे और साफ़ तरीके से बताऊँगा कि राज्यपाल क्या करते हैं, उनकी सीमाएँ क्या हैं और कैसे आप राज्यपाल से जुड़ी खबरें समझकर सही जानकारी पा सकते हैं।
राज्यपाल को राष्ट्रपति नियुक्त करते हैं और उनका कार्यकाल सामान्यतः पाँच साल का माना जाता है। पर ध्यान रखें—वे "राष्ट्रपति की इच्छा" पर भी रहते हैं, यानि किसी भी समय हटाए जा सकते हैं। रोज़मर्रा के कार्यों में मुख्यमंत्री और मंत्रियों के पद की शपथ दिलवाना, विधानसभा सत्र बुलाना या भंग करना, और बिलों को मंजूरी देना शामिल है।
कानून पास होने पर राज्यपाल के पास चार विकल्प होते हैं: मंजूर करना, अस्वीकृत करना, राष्ट्रपति के पास भेजना, या संविधान के अनुरूप वापस भेजकर स्पष्टीकरण माँगना। कुछ स्थितियों में राज्यपाल के पास स्वतंत्र निर्णय लेने की शक्ति भी रहती है—जैसे जब कोई पार्टी स्पष्ट बहुमत न बनाए। ऐसे मामलों को "डिस्क्रेशनरी पावर" कहा जाता है।
राज्यपाल सामान्य परिस्थितियों में मुख्यमंत्री और कैबिनेट की सलाह पर चलते हैं। उनकी शक्तियाँ सीमित हैं और राजनीतिक समर्थन मिलने पर ही बड़े कदम लिए जा सकते हैं। फिर भी, संवैधानिक संकट या कानून-व्यवस्था की बिगड़ती स्थिति में वे राष्ट्रपति को राज्य की स्थिति बताकर केन्द्र को हस्तक्षेप के लिए सुझाव दे सकते हैं—इसे ही राष्ट्रपति शासन की सिफारिश कहा जाता है।
इसे समझने का आसान तरीका: रोज़मर्रा की नीति पर प्रभाव कम, पर जब सिस्टम अटका हो तो राज्यपाल अहम भूमिका निभा सकते हैं।
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