सोचिए: एक हमला किसी सदस्य देश पर हुआ और बाकी देश मिलकर तुरंत जवाब दें—यही नाटो की बुनियाद है। नाटो की शुरुआत द्वितीय विश्व युद्ध के बाद सुरक्षा और सहयोग के लिए हुई थी। आज यह सिर्फ सैन्य गठबंधन नहीं रहा, बल्कि राजनीति, साइबर सुरक्षा और रणनीतिक प्रभाव का एक बड़ा मंच बन गया है।
नाटो यानी North Atlantic Treaty Organization एक सैन्य और राजनीतिक गठबंधन है जिसका मकसद सदस्य देशों की सुरक्षा सुनिश्चित करना है। इसका मुख्य सिद्धांत आर्टिकल 5 है — अगर एक सदस्य पर हमला होता है तो उसे सभी सदस्य देश अपना हमला माना जाएगा। निर्णय आम तौर पर सहमति (कंसेंसस) से होते हैं, यानी हर सदस्य की मंज़ूरी जरूरी रहती है।
नाटो मुख्य रूप से यूरोप और उत्तर अमेरिका के देशों का समूह है, और इसका मुख्यालय ब्रुसेल्स में है। नाटो अब पारंपरिक सैन्य ताकत के साथ-साथ साइबर डिफेंस, खुफिया साझेदारी और आपातकालीन मानवीय सहायता पर भी काम करता है। सदस्य देशों से अपेक्षा की जाती है कि वे अपने रक्षा बजट का एक निश्चित हिस्सा (कभी‑कभी 2% GDP लक्ष्य के रूप में बताया जाता है) खर्च करें, ताकि गठबंधन मजबूत रहे।
नाटो का प्रभाव स्थानीय और वैश्विक दोनों स्तरों पर दिखता है। एक तरफ यह सदस्य देशों को सुरक्षा का भरोसा देता है और छोटे संघर्षों को रोकने में मदद कर सकता है। दूसरी तरफ, बड़े भू-राजनीतिक तनाव—जैसे रूस और पश्चिम के बीच तनातनी—में नाटो अक्सर केंद्र में रहता है।
हाल के सालों में नाटो ने रूसी आक्रामकता, साइबर हमलों और असमान गतिविधियों पर ध्यान बढ़ाया है। वहीं चीन के उठते हुए प्रभाव को देखते हुए नाटो की नीतियों में रणनीतिक बदलाव देखे जा रहे हैं। इससे क्षेत्रीय देशों के लिए सुरक्षा चुनौतियाँ और नए गठबंधनों के मौके दोनों बन रहे हैं।
भारत नाटो का सदस्य नहीं है, लेकिन नाटो की नीतियाँ और यूरोपीय सुरक्षा वातावरण सीधे-सीधे भारत की विदेश नीति और रक्षा रणनीति को प्रभावित कर सकते हैं। उदाहरण के तौर पर, वैश्विक सप्लाई चेन, समन्वित समुद्री सुरक्षा और साइबर कानूनों में बदलाव का असर भारत पर भी पड़ता है।
नाटो की गतिविधियों को फॉलो करना आसान है: नाटो की आधिकारिक वेबसाइट, बड़े समाचार चैनल और सुरक्षा विश्लेषण देने वाली साइटें नियमित अपडेट देती हैं। अगर आप समझना चाहते हैं कि किसी भू-राजनीतिक घटना का सीधा असर आपके देश या क्षेत्र पर क्या होगा, तो नाटो के बयान और सदस्य देशों के संयुक्त अभ्यास और नीतिगत कागजात देखना फायदेमंद रहेगा।
नाटो आज सिर्फ सेना का क्लब नहीं रहा; यह वैश्विक सुरक्षा, तकनीकी खतरे और रणनीतिक साझेदारी का बड़ा खिलाड़ी है। समझना जरूरी है ताकि हम बदलते सुरक्षा माहौल में बेहतर निर्णय और बहस कर सकें।