IC 814 का नाम सुनते ही कई लोगों के ज़ेहन में वो तनाव भरे दिन लौट आते हैं। 24 दिसंबर 1999 को भारतीय एयरलाइंस की यह फ्लाइट कबूता से दिल्ली जा रही थी, जब उसे हाईजैक कर लिया गया और विमान अफगानिस्तान के कंधार ले जाया गया। यह घटना न सिर्फ यात्रियों के लिए बल्कि देश की सुरक्षा नीतियों के लिए भी एक बड़ा मोड़ साबित हुई।
फ्लाइट को जब हाईजैक किया गया, तो घबराहट और अनिश्चितता ने माहौल घेरा। अपहरणकारियों ने कड़ी माँगें रखीं और कंधार में एयरकर्मी और यात्री कई दिनों तक फंसे रहे। उस समय कंधार पर तालिबान का प्रभाव था, इसलिए मामला अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उलझा रहा। अंततः भारत और अपहरणकारियों के बीच समझौता हुआ और कुछ बंदियों की रिहाई के बदले यात्रियों को छोड़ दिया गया।
क्या यह एक रणनीति की विफलता थी? सवाल सही है। उस समय की परिस्थितियाँ, तत्कालीन खुफिया जानकारी और अंतरराष्ट्रीय दबाव ने निर्णयों को प्रभावित किया। कठिन विकल्पों में से चुनी गई नीति ने आगे चलकर कई सुरक्षा बहसें जन्म दीं।
IC 814 के बाद भारत ने हवाई सुरक्षा को मजबूत करने की ज़रूरत महसूस की। एयरपोर्टscreening सख्त हुई, स्काईमार्शल जैसी व्यवस्था पर जोर बढ़ा और इंटर-एजेंसी समन्वय सुधारा गया। यह घटना आतंकवाद वाले मामलों में नीति निर्धारण का एक चेतावनी संकेत बन गई।
एक और बड़ा असर ये रहा कि जिन कैदियों की रिहाई हुई, उनका बाद में देश की सुरक्षा पर गंभीर असर देखा गया। इसने दिखा दिया कि किसी भी समझौते के दीर्घकालिक प्रभावों का आकलन पहले से करना कितना जरूरी है।
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