ब्रेस्ट कैंसर से डरना स्वाभाविक है, लेकिन जल्दी पहचानना और सही कदम उठाना सबसे बड़ा फायदा देता है। अगर आप स्तन में गांठ, त्वचा पर बदलाव, निप्पल से तरल बहना या आकार बदलना देखें तो जल्द डॉक्टर से मिलें। छोटे-छोटे संकेत भी महत्वपूर्ण हो सकते हैं।
आम लक्षणों में दर्द से ज़्यादा गांठ, स्तन या ब्रेस्ट की त्वचा पर खिंचाव, निप्पल में उलटाव या अलग तरह का स्राव शामिल हैं। हर महिला को महीने में एक बार स्व-परिक्षण करना चाहिए — यह आसान है और घर पर किया जा सकता है।
मेडिकल स्क्रीनिंग में मैमोग्राफी सबसे आम है। सामान्य सलाह यह है कि 40 साल से ऊपर की महिलाओं को नियमित मैमोग्राफी करानी चाहिए; अगर आपके परिवार में स्तन कैंसर का इतिहास है तो डॉक्टर पहले सलाह देंगे। उच्च जोखिम वाले लोगों के लिए MRI और जेनेटिक काउंसलिंग की जरूरत पड़ सकती है।
कुछ जोखिम कारक बदलने योग्य हैं और आप उन्हें नियंत्रित कर सकते हैं: अतिरिक्त वजन घटाना, नियमित व्यायाम, शराब कम करना और धूम्रपान न करना मददगार है। मां बनकर बच्चे को स्तनपान कराने से जोखिम कम होता है। लंबे समय तक हार्मोनल थेरेपी लेने पर जोखिम बढ़ सकता है, इसलिए डॉक्टर से चर्चा जरूरी है।
जेनेटिक फैक्टर्स (जैसे BRCA जीन) जोखिम बढ़ाते हैं; अगर परिवार में कई मामलों का इतिहास है तो जेनेटिक टेस्ट और सलाह लें। इससे पहले से सावधानी और निगरानी आसान हो जाती है।
बचाव के सरल कदम: हर महीने खुद का निरीक्षण करें, हर साल डॉक्टर से चेकअप कराएं, 40 के बाद नियमित मैमोग्राफी पर विचार करें और स्वस्थ जीवनशैली अपनाएँ। ये छोटे कदम बड़े फर्क ला सकते हैं।
अगर जांच में कुछ संदिग्ध मिलता है तो फाइन-नीडल बायोप्सी, कोर बायोप्सी या इमेजिंग टेस्ट से पुष्टि होती है। कई बार डरने की आवश्यकता नहीं — पर जांच बिना समय गंवाए करानी चाहिए।
इलाज के विकल्प आमतौर पर सर्जरी (लम्पेक्टॉमी या मैस्टेक्टॉमी), रेडियोथेरेपी, कीमोथेरेपी, हार्मोनल या टार्गेटेड थेरेपी होते हैं। ट्रीटमेंट का चुनाव ट्यूमर के प्रकार, स्टेज और मरीज की स्थिति पर निर्भर करता है। मल्टी-डिसिप्लिनरी टीम — सर्जन, ऑन्कोलॉजिस्ट और रेडियोग्राफर — साथ मिलकर प्लान बनाते हैं।
डायग्नोसिस मिलने पर तुरंत निर्णय न लें; दूसरे डॉक्टर से राय लें, उपचार योजनाओं और साइड इफेक्ट्स के बारे में सवाल पूछें। मानसिक सहारा भी जरूरी है — परिवार, मित्र या सपोर्ट ग्रुप से जुड़ें।
ब्रेस्ट कैंसर के बारे में जानकार रहकर आप बेहतर फैसले ले सकते हैं। सवाल हो तो डॉक्टर से खुलकर बात करें और नियमित जांच को प्राथमिकता दें। जल्दी पता चलना अक्सर इलाज को आसान और असरदार बनाता है।