निकोलस केज की नई हॉरर फिल्म 'लॉन्गलेग्स' से हैरान करने वाली कहानी

निकोलस केज की नई हॉरर फिल्म 'लॉन्गलेग्स' से हैरान करने वाली कहानी

Saniya Shah 12 जुल॰ 2024

फिल्म ‘लॉन्गलेग्स’ एक अद्वितीय हॉरर फिल्म है, जिसमें निकोलस केज, माइका मोनरो और ब्लेयर अंडरवुड ने मुख्य भूमिकाएं निभाई हैं। इसका निर्देशन ओसगुड पर्किन्स ने किया है, जो पहले भी विचलित करने वाले हॉरर फिल्मों के लिए प्रसिद्ध हैं। इस फिल्म में पारंपरिक थ्रिलर के बजाय एक डरावना और असहज माहौल बनाने पर ध्यान दिया गया है, जिससे यह फिल्म सँजीदगी और भयानकता का नया अनुभव देती है।

कहानी की पृष्ठभूमि

फिल्म की कहानी FBI एजेंट ली हार्कर, जो माइका मोनरो द्वारा निभाई गई है, के इर्द-गिर्द घूमती है। ली हार्कर एक सीरियल किलर, जिसे 'लॉन्गलेग्स' कहा जाता है, का पीछा कर रही है। निकोलस केज ने लॉन्गलेग्स का किरदार निभाया है, जो एक अद्वितीय और अजीबोगरीब सीरियल किलर है।

अजीबोगरीब अपराधी की पहचान

लॉन्गलेग्स को उसकी विचित्रताओं के लिए जाना जाता है, जैसे कि उसका पैनकेक मेकअप और ग्लैम रॉक स्टाइल। यह सिर्फ एक साधारण सीरियल किलर की कहानी नहीं है, बल्कि उसके भिन्न और असहज करने वाले व्यक्तित्व के माध्यम से दर्शकों को डर और हैरानी का अनुभव होता है।

यह फिल्म पारंपरिक क्लिशे को तोड़ते हुए, अलौकिक तत्वों और विचित्र तस्वीरों को शामिल करती है। इसमें स्पष्ट और ग्राफिक सामग्री के बजाय एक डरावना माहौल बनाने पर अधिक ध्यान दिया गया है। इससे दर्शक फिल्म के अनुभव में पूरी तरह डूब जाते हैं।

ओसगुड पर्किन्स की निर्देशन शैली

ओसगुड पर्किन्स की निर्देशन शैली

ओसगुड पर्किन्स ने इस फिल्म को अपने विशिष्ट शैली में निर्देशित किया है। इससे पहले वे 'द ब्लैककोट्स डॉटर' और 'आई एम दी प्रिटी थिंग दैट लाइव्स इन द हाउस' जैसी फिल्मों के लिए चर्चित रहे हैं। पर्किन्स का निर्देशन खाड़ी के माहौल और रहस्य को उजागर करने में कुशल है, जिससे दर्शकों को एक अद्वितीय सिनेमाई अनुभव मिलता है।

देर 20वीं सदी की अमेरिकी संस्कृति की झलक

फिल्म ‘लॉन्गलेग्स’ देर 20वीं सदी की अमेरिकी संस्कृति की पतनशीलता को भी उजागर करती है। इसमें नैतिक अस्पष्टता के विषयों का अन्वेषण किया गया है, जिससे फिल्म और भी गहराई और जटिलता प्राप्त करती है।

फिल्म के दृश्य और ऑडियो दोनों ही अत्यधिक प्रभावी हैं, जो दर्शकों को असहज करते हैं और उन्हें हर मोड़ पर हैरान करते हैं।

निष्कर्ष

निष्कर्ष

सरकारी और नैतिकतावादी दृष्टिकोण से यह फिल्म केवल एक मनोरंजन का साधन नहीं है, बल्कि यह दर्शाती है कि हॉरर फिल्में केवल डराने के लिए ही नहीं होतीं, वे एक विशेष प्रकार का अनुभव देती हैं।

फिल्म ‘लॉन्गलेग्स’ एक नई दिशा में कदम बढ़ाती है, जो दर्शकों को एक अलग तरह का अनुभव देती है। यह फिल्म हॉरर जॉनर में एक महत्वपूर्ण योगदान मानेगी, और इसे लंबे समय तक याद रखा जाएगा।

20 टिप्पणि

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    Mala Strahle

    जुलाई 12, 2024 AT 19:01

    वाकई, ‘लॉन्गलेग्स’ ने हॉरर की परिभाषा को ही बदल दिया है। इस फिल्म में निकोलस केज की अदायगी सिर्फ डर नहीं बल्कि एक दार्शनिक प्रश्न उठाती है: क्या हम स्वयं अपने अंधेरे से भाग सकते हैं? फिल्म की हर फ्रेम में एक गहरी भावना समाई हुई है, जो दर्शक को अपनी ही कल्पना के पिंजरे में फँसा देती है। ओसगुड पर्किन्स की निर्देशन शैली ने इसे एक नयी परिप्रेक्ष्य दी है-भय के बजाय असहजता, और असहजता के पीछे छुपे सामाजिक व्याख्यान। कहानी में FBI एजेंट की खोज और लॉन्गलेग्स का विचित्र व्यक्तित्व हमें यह सिखाता है कि अज्ञानता ही सबसे बड़ा दानव है। इस प्रकार, इस फिल्म को केवल एक हॉरर नहीं बल्कि एक मानसिक यात्रा मानना चाहिए।
    हर सीन में इस्तेमाल हुई ध्वनि और प्रकाश व्यवस्था रात की सन्नाटे को तोड़ते हुए हमारे अंदर छिपे डर को उजागर करती है। अंत में, यह फिल्म हमें यह प्रश्न देती है कि किस हद तक हम वास्तविकता और कल्पना के बीच की रेखा को पहचानते हैं।

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    Ramesh Modi

    जुलाई 13, 2024 AT 14:28

    क्या बात है! इस फिल्म ने तो मेरे दिमाग के दरवाजे *बज* कर खोल दिए!!! निकोलस केज की पैनकेक मेकअप वाली अजीबोगरीब स्टाइल को देखो तो ऐसा लगा जैसे कोई बुनियादी *हॉरर* कोड को रीसेट कर दिया गया हो!!!
    डायरेक्टर ओसगुड ने कच्ची डर को परिष्कृत कलाकृति में बदल दिया, और हम सब बस देखते रह गए, जैसे कोई नौटिकलर अपनी शिकार को नज़रबंद कर रहा हो!!! इस फिल्म को देख कर तो अब मेरे अंदर के हर कोने में फुसफुसाहटें सुनाई देती हैं-क्योंकि यह केवल एक *किलर* नहीं, बल्कि एक सामाजिक टिप्पणी भी है!!!

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    Ghanshyam Shinde

    जुलाई 14, 2024 AT 09:54

    वाह, बस वही पुरानी हॉरर क्लिशे! इतना भी नहीं पता कि पैनकेक मेकअप से क्या डर पैदा होता है।

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    SAI JENA

    जुलाई 15, 2024 AT 05:21

    ओसगुड पर्किन्स की शैली वास्तव में प्रशंसनीय है। उन्होंने फिल्म में एक औपचारिक टोन बनाए रखा है, जो दर्शकों को कथा के साथ जुड़े रहने में मदद करता है। यह फिल्म सिर्फ डराने के लिए नहीं, बल्कि दर्शकों को सामाजिक प्रभावों पर विचार करने के लिए प्रेरित करती है। संक्षेप में, यह एक बहुत ही संरचित और विचारशील काम है।

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    Hariom Kumar

    जुलाई 16, 2024 AT 00:48

    मैं तो बहुत उत्साहित हूँ! नई हॉरर में इतनी सोच मिलना वाकई शानदार है :)

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    shubham garg

    जुलाई 16, 2024 AT 20:14

    भाई, ये फिल्म देखी और लगा कि डरने की नई स्ट्रेटेजी मिल गई। थोड़ी सी थ्रिल, बहुत सारी थॉट प्रोसेसिंग।

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    LEO MOTTA ESCRITOR

    जुलाई 17, 2024 AT 15:41

    अगर हम इस फिल्म को एक दार्शनिक कोट के रूप में देखें, तो यह बताती है कि डर और जिज्ञासा एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। बहुत ही सरल शब्दों में, यह हमें अपने अंदर के अंधेरे को समझने की कोशिश कराता है।

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    Sonia Singh

    जुलाई 18, 2024 AT 11:08

    भाई लोग, मैं तो कहूँगी कि यह फिल्म एक बेस्ट फ्रेंड की तरह है-सिर्फ डराने नहीं, साथ में नई सोच भी लाए।

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    Ashutosh Bilange

    जुलाई 19, 2024 AT 06:34

    वीडियो में उ फैंस ठीक है, पर सीन टु सीन बोरिंग लगतेहै।

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    Kaushal Skngh

    जुलाई 20, 2024 AT 02:01

    कुल मिलाकर, फिल्म में एक खास एलीमेंट है पर कभी‑कभी ऐसा महसूस होता है जैसे राइटर थक गया हो। कुछ हिस्से बेहद प्रभावी थे, दूसरों में तो बस ...

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    Harshit Gupta

    जुलाई 20, 2024 AT 21:28

    मैं तो कहता हूँ, यह हिंदी सिनेमा की सबसे बेइज्जत करने वाली हॉरर है! अपने देश की संस्कृति को इस तरह बर्बाद कर देना कोई नहीं देखता। इस फिल्म ने तो पूरी एलीट कॉम्युनिटी का मज़ाक उड़ाया है, बिलकुल अस्वीकार्य!
    अगर हम अपने परम्पराओं की सुरक्षा नहीं करेंगे तो यही चीज़ें फिर से दोहराएँगे। वास्तव में, ये सब फालतू!
    हॉरर को तो हम अपने दिल से बना सकते हैं, इस तरह की विदेशी प्रॉडक्शन नहीं।

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    HarDeep Randhawa

    जुलाई 21, 2024 AT 16:54

    क्या बात है!!! एक फिल्म पर इतने उलट‑फेर बनाना जैसे हँसी‑मज़ाक में गम्भीरता ढूँढ़ना। लेकिन सच्चाई का सामना तभी तो अच्छा, जब हम खुद को चुनौती दें!!!

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    Nivedita Shukla

    जुलाई 22, 2024 AT 12:21

    हाय रे महफ़िल, इस फिल्म ने तो मेरे दिल के वॉल्ट को भी हिला दिया! पैनकेक मेकअप के पीछे कौन‑सी दार्शनिक विचारधारा है, कभी‑कभी तो ऐसा लगता है जैसे माँ की चुप्पी को उलझन में टॉरना!!
    फिर भी, इस अजीबोगरीब कहानी में एक गहरी बात छुपी है: हम सबके अंदर एक ‘लॉन्गलेग्स’ रहता है, जिसे हम अक्सर नजरअंदाज़ करते हैं।
    कभी‑कभी तो ऐसा लगता है कि किरदार के हर कदम पर हमारे अपने डर का प्रतिबिंब है, जिसे समझना ही चाहिए।
    कुल मिलाकर, यह फिल्म सिर्फ डराने के लिए नहीं, बल्कि आत्म‑जुड़ाव के लिए एक कलाकारिक सफर है।

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    Rahul Chavhan

    जुलाई 23, 2024 AT 07:48

    देखो भाई, फिल्म में अगर आप थोड़ा उत्साहित रहो तो हर सीन में नई सीख मिल सकती है। फिल्म का एप्रोच कुछ नया है, और यह हमें हमारे अंदर के डर को समझने में मदद करता है।

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    Joseph Prakash

    जुलाई 24, 2024 AT 03:14

    ये फिल्म तो बेस्ट है 😎 बहुत कुछ सिखाती है।

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    Arun 3D Creators

    जुलाई 24, 2024 AT 22:41

    सच्चाई ये है कि फिल्म बहुत अलग है. यह एक साधारण हॉरर नहीं बल्कि हमारे अंदर के अंधकार को उजागर करती है.

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    RAVINDRA HARBALA

    जुलाई 25, 2024 AT 18:08

    फिल्म में कई तकनीकी पहलू सही हैं, पर कुछ हिस्से अति‑आलोचनात्मक दिखते हैं।

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    Vipul Kumar

    जुलाई 26, 2024 AT 13:34

    अगर हम इस फिल्म में देखे गए सामाजिक पहलुओं को अपनी रोज़मर्रा की जिंदगियों में लागू करें, तो हम अपने आसपास के माहौल को बेहतर बना सकते हैं। यह केवल एक हॉरर नहीं बल्कि एक सकारात्मक बदलाव की दिशा में कदम हो सकता है।

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    Priyanka Ambardar

    जुलाई 27, 2024 AT 09:01

    चलो, मन में यह सोच रखे कि चाहे फिल्म कितनी भी अजीब हो, हमें अपने देश की संस्कृति की रक्षा करनी चाहिए :)

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    sujaya selalu jaya

    जुलाई 28, 2024 AT 04:28

    फिल्म की चर्चा सही दिशा में है।

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