निक्केई 225 में ऐतिहासिक गिरावट: ट्रंप के टैरिफ का सीधा असर
शेयर बाजारों की दुनिया में जो हाहाकार अप्रैल 2025 में दिखा, वैसा नजारा जापान के निवेशकों ने सालों से नहीं देखा था। अप्रैल की शुरुआत में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अचानक कई देशों—चीन, कनाडा और मेक्सिको समेत—ट्रेड सेक्टर्स पर भारी टैरिफ लगाने की घोषणा की। इस खबर के फैला मात्र से ही विश्व बाजार में बेचैनी दौड़ गई।
पैनिक सेलिंग इतनी तेज़ रही कि निक्केई क्रैश शब्द जापान की सुर्खियों का हिस्सा बन गया। 7 अप्रैल 2025 को तो मानो बवंडर आ गया—निक्केई 225 इंडेक्स 2,644 अंक लुढ़क गया, यानी करीब 7.82% की गिरावट। दर्जनों बार ट्रेडिंग रोकनी पड़ी क्योंकि सर्किट ब्रेकर बार-बार ट्रिगर हो गए। यह गिरावट अक्टूबर 2023 के बाद सबसे निचला स्तर थी, जब इंडेक्स 31,136.58 पर बंद हुआ। इससे पहले भी 31 मार्च को इंडेक्स ने 4% की गिरावट झेली थी और निवेशक पहले से ही सहमे बैठे थे।

निर्यात पर टैरिफ का दबाव और निवेशकों की प्रतिक्रिया
जापान की अर्थव्यवस्था का एक बड़ा हिस्सा निर्यात पर टिका है और अमेरिका उसका सबसे बड़ा बाजार है। ट्रंप के नए टैरिफ से ऑटोमोबाइल, इलेक्ट्रॉनिक्स और मशीनरी सेक्टर की कंपनियां सीधे प्रभावित हुईं। मई 2025 में अमेरिका को जापान के निर्यात में 1.8% की गिरावट दर्ज की गई—ये आंकड़ा सिर्फ नंबर नहीं, बल्कि लाखों लोगों की नौकरियों और कंपनियों के मुनाफे पर असर डालता है।
इसी डर से निवेशक दूसरी सुरक्षात्मक जगहों पर पैसे लगाने लगे। येन की कीमत डॉलर के मुकाबले 149.13-15 तक मजबूत हो गई, क्योंकि हर कोई 'सेफ हेवन' ढूंढ़ने लगा। विदेशी निवेशक भी अपने पैसे निकालने लगे तो लिक्विडिटी का संकट और गहरा गया।
हालांकि 9 अप्रैल को टैरिफ बढ़ोतरी पर अस्थाई रोक लगने की खबर आई, जिससे बाजार में थोड़ा सुकून दिखा। लेकिन शेयर बाजार का मिजाज स्थायी रूप से नहीं बदला, क्योंकि अधिकांश विशेषज्ञों ने चेताया कि ट्रंप प्रशासन के रुख में अचानक बदलाव या नई ट्रेड वार की चिंता हमेशा बनी रहेगी।
- मार्च-अप्रैल में निक्केई ने 3,800 से ज्यादा अंक गंवाए
- ऑटो कंपनियों और टेक्नोलॉजी सेक्टर में सबसे ज्यादा गिरावट आई
- निवेशकों ने सबसे पहले बैंकों और फाइनेंशियल कंपनियों से पैसा निकाला
- ब्रोकरेज हाउसों ने रिटेल निवेशकों को सतर्क रहने की सलाह दी
एमेरिका का S&P 500 इंडेक्स मई के मध्य तक धीरे-धीरे रिकवर हुआ, जब टैरिफ में आंशिक छूट और कुछ समझौते सामने आए। लेकिन जापान में बाजार की सेहत को लेकर समय-समय पर नए सवाल उठने लगे हैं। कौन सी नीति कब बदल जाए, इसका डर निवेशकों के सिर पर मंडराता रहता है। और शायद इसी वजह से वित्तीय बाजारों में स्थिरता की तलाश अभी बाकी है।
Tejas Srivastava
जून 17, 2025 AT 19:56क्या!!! यह तबाही का दृश्य है!!! ट्रम्प की टैरिफ़ की धमकी से निक्केई 225 का गिरना... ऐसा लगता है जैसे बिचली हवा से बवंडर आया हो!!! निवेशकों की हालत... खलबली!!!
JAYESH DHUMAK
जून 17, 2025 AT 20:40अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा अप्रत्याशित टैरिफ़ घोषणा ने वैश्विक वित्तीय बाजारों में अस्थिरता को उत्प्रेरित किया।
विशेषकर जापान के निक्केई 225 जैसे प्रमुख सूचकांक पर इसके प्रत्यक्ष प्रभाव को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता।
अप्रैल 2025 में हुई इस नीति परिवर्तन ने न केवल शेयर मूल्यों को गिराए, बल्कि निवेशकों के मानसिकता को भी हिलाकर रख दिया।
रिपोर्टों के अनुसार निक्केई 225 ने एक ही दिन में 7.82% की गिरावट दर्ज की, जो पिछले तीन वर्षों में देखा गया सबसे बड़ा दैनिक गिरावट है।
इस गिरावट का मुख्य कारण अमेरिकी टैरिफ़ द्वारा जापान के प्रमुख निर्यात क्षेत्रों-ऑटोमोबाइल, इलेक्ट्रॉनिक्स तथा मशीनरी-पर दबाव डालना था।
परिणामस्वरूप जापानी कंपनियों के निर्यात में 1.8% की कमी आई, जिससे उनके राजस्व और लाभ मार्जिन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा।
साथ ही, विदेशी निवेशकों ने भी अपनी पोर्टफोलियो को पुनः संतुलित करने के लिए जापानी शेयर बाजार से पूँजी बाहर निकालना शुरू कर दिया।
इस परिनामी प्रवाह ने बाजार में तरलता की कमी को बढ़ावा दिया, जिससे सर्किट ब्रेकर कई बार सक्रिय हो गया।
नीति की अनिश्चितता को देखते हुए, कई वित्तीय संस्थानों ने रिटेल निवेशकों को सावधानी बरतने की सलाह दी।
बाजार विशेषज्ञों का मानना है कि यदि अमेरिकी टैरिफ़ नीति में स्थिरता नहीं आती, तो निक्केई 225 की पुनःबाज़ी में अतिरिक्त समय लग सकता है।
तथापि, जुलाई 2025 में टैरिफ़ में आंशिक छूट और द्विपक्षीय समझौते के संकेत मिलने से कुछ राहत मिली है।
इस संदर्भ में, जापानी सरकार को निर्यातकों को समर्थन देने हेतु वैकल्पिक उपायों पर विचार करना आवश्यक है।
जैसे कि वैकल्पिक बाजारों में निर्यात को बढ़ावा देना और तकनीकी नवाचार को सुदृढ़ करना।
अंततः, वैश्विक व्यापार नीतियों में स्थिरता और पारस्परिक भरोसे का निर्माण ही दीर्घकालिक आर्थिक सुरक्षा को सुनिश्चित करेगा।
इसलिए, बाजार प्रतिभागियों को दीर्घकालिक दृष्टिकोण अपनाते हुए अल्पकालिक उतार-चढ़ाव को संतुलित दृष्टि से देखना चाहिए।
Santosh Sharma
जून 17, 2025 AT 21:40ऐसे समय में धैर्य और समझदारी से कदम बढ़ाना आवश्यक है।
yatharth chandrakar
जून 17, 2025 AT 22:40ट्रम्प के टैरिफ़ का प्रभाव विशेष रूप से एक्सपोर्ट‑ओरिएंटेड सेक्टरों में स्पष्ट है; इस कारण कंपनियों को वैकल्पिक बाजारों का विस्तार करना चाहिए।
Vrushali Prabhu
जून 17, 2025 AT 23:40यार, इश पोस्त से लाग रहा ह कि हमनें सबकुछ समझ लिया ह, पर असल में तो बहुत सारा डेटा बचे हैं।
parlan caem
जून 18, 2025 AT 00:40ऐसे सतही निष्कर्ष निकालना न सिर्फ अयोग्य है बल्कि निवेशकों को भटकाता है।
Mayur Karanjkar
जून 18, 2025 AT 01:40कच्ची डेटा‑सिंथेसिस के बिना मॉडल वैधता नहीं सुनिश्चित कर सकती।
Sara Khan M
जून 18, 2025 AT 02:40ट्रम्प की टैरिफ़ ने बाजार को हिला दिया 😂
shubham ingale
जून 18, 2025 AT 03:40आशा है कि नीति में बदलाव जल्दी आएगा 😊
Ajay Ram
जून 18, 2025 AT 04:40विचार करने की बात है कि टैरिफ़ जैसी नीतियों का दीर्घकालिक प्रभाव केवल सांख्यिकीय गिरावट में नहीं बल्कि सामाजिक संरचना में भी परिलक्षित होता है।
जापान की आर्थिक संस्कृति, जो निर्यात पर अत्यधिक निर्भर है, उसे ऐसे अचानक परिवर्तन से पुनःस्थापित करने के लिये नवाचार और विविधीकरण की जरूरत पड़ेगी।
हमें यह समझना चाहिए कि नीति में अनिश्चितता निवेशकों के निर्णय‑संकट को उत्पन्न करती है, जिससे बाजार की गहराई में अस्थिरता बढ़ती है।
ऐसे माहौल में, वित्तीय संस्थानों को जोखिम‑प्रबंधन के नए उपकरण विकसित करने चाहिए, ताकि पूँजी प्रवाह को स्थिर किया जा सके।
साथ ही, सरकार को निर्यातकों को वैकल्पिक दर्शक खोजने में समर्थ बनाने हेतु द्विपक्षीय समझौते को तेज़ी से निष्पादित करना चाहिए।
सारांश में, केवल टैरिफ़ को हटाने से समस्या हल नहीं होगी; समग्र आर्थिक रणनीति में सुधार आवश्यक है।
इस प्रक्रिया में सभी हितधारकों को समावेशी संवाद में भाग लेना चाहिए, जिससे विश्वास की नींव स्थापित हो सके।
अंत में, आशा है कि भविष्य में ऐसी नीति‑निर्माण प्रक्रियाएँ अधिक पूर्वानुमानित और पारदर्शी होंगी।